बेदर्द ज़माना

इस ज़माने में दर्द बहुत है आइना-ए-ईमान में गर्द बहुत है, कई दफा दिखी दम तोड़ती इंसानियत, जज़्बात-ए-इन्सां अब सर्द बहुत है.... वक़्त बुरा हो, तब हाथ बढ़ाता नहीं कोई, कहने को तो यूँ यहाँ, हमदर्द बहुत हैं.... मजलूम पर और भी, ढाती है ज़ुल्म दुनिया , जाने क्यों इन्सां यहाँ , बेदर्द बहुत हैं.... -रोली...