उल्फत
जलवा-ए-हुस्न कुछ ऐसा है कि,
हम पर शामत क्या कहिये....
पलकों की चिलमन गर उठें,
लोगों की हालत क्या कहिये .....
आँखों में उल्फत के डोरे ,
उफ़,ज़िक्र-ए-कयामत क्या कहिये...
छुप-छुप कर नज़रों का मिलना,
हम पे ये इनायत क्या कहिये ......
बना कर तुझको वो खुद है हैरां ,
और इश्क-ए-इबादत क्या कहिये .....
कर लूं दुश्मनी खुदा से भी,
अब और बगावत क्या कहिये....
- रोली
"कर लूँ दुश्मनी खुदा से भी
ReplyDeleteअब और बगावत क्या कहिये"
इससे बढ़कर और क्या होगा - लाजवाब
शुक्रिया राकेश कौशिक जी....
Deleteवाह...
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल....
अनु
अनु जी, बहुत-बहुत शुक्रिया....
Deletevery nice
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