दिन-रात
दिन भर आसमां पर
टंगा हुआ सूरज,
सांझ ढले टूट रहा...
क्षितिज पर पड़ा हुआ
दहकता अग्निपिंड सा......
अगन अब ना रही
अब तो है शीतलता
वहीँ जहाँ मिलन हो रहा
अवनि और अम्बर का......
समेटती आलिंगन में
अटल पर्वत श्रृंखलाएं,
भुला कर अपना तेज,
उनकी बाँहों में खो रहा.........
ढक रहा तम, उजाला सूर्य का,
लो आ गई अब बारी चाँद की....
आ गया हमको लुभाने
ले के बारात सितारों की .......
- रोली
सजीव चित्रण - बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद राकेश कौशिक जी..
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