दो बैल...

कल मर गया किशनू का बूढा बैल, अब क्या होगा... कैसे होगा... चिंतातुर,सोचता-विचारता मन ही मन बिसूरता थाली में पड़ी रोटी टुकड़ों में तोड़ता सोचता,,,बस सोचता... बोहनी है सिर पर, हल पर गडाए नज़र, एक ही बैल बचा... हे प्रभु, ये कैसी सज़ा...!!! स्वयं को बैल के रिक्तस्थान पे देखता.. मन-ही-मन देता तसल्ली खुद से ही कहता, मै ही करूँगा...हाँ मै ही करूँगा... बैल ही तो हूँ मै, जीवन भर ढोया बोझ, इस हल का भी ढोऊंगा कितनी भी विपत आये, फसल अवश्य बोऊंगा... खाट छोड़ ,मुह अँधेरे ही.. निकल पड़ा खेत की ओर, दो बैल जोत रहे खेत, होने लगी देखो भोर......... - रोली पाठक http://wwwrolipathak.blogspot.com/