अजन्मी....
ह्रदय का द्वन्द
नहीं ले पा रहा
शब्दों का रूप,
विचारों की उथल-पुथल
नहीं मिलता एक निष्कर्ष
भाग रहे शब्द बेलगाम
मिलता नहीं छोर
कैसे पिरोउं उन्हें..
कहाँ है डोर.....!
है मस्तिष्क में संग्राम
क्या लिखूं,कैसे लिखूं..
या दे दूं उन्हें विराम...!
प्रश्नवाचक चिन्ह
खडा है मुह बाये,
कैसे ये अजीब शब्द
मेरी लेखनी में समायें...??
क्या लिखूं कि कुछ,
पढने लायक बन जाये....
एक पंक्ति के लगें हैं
चार-चार अर्थ,
पा रही आज स्वयं को..
लिखने में असमर्थ..
देखा जो वह ह्रदय को
झिंझोड़ गया..
घर के पिछवाड़े नाले में,
फिर कोई अजन्मा भ्रूण छोड़ गया....
कब तक होंगी ये
कन्या भ्रूण हत्याएं....?
बाप तो ना समझेगा..
कब जागेंगी ये मायें.......??
जागो, हे नारी,
तुम्हे ही लड़ना होगा...
वर्ना अनचाहे भ्रूण को,
यूँ ही नालों में सड़ना होगा......
यूँ ही सड़ना होगा..................!
-रोली पाठक
http://wwwrolipathak.blogspot.com/
"मर्मस्पर्शी कविता..पता नहीं क्यों कन्याओं को लोग मार देते हैं पर एक बात है कि कुछ महिलाओं के मदद के बिना पुरूष ये जघन्य अपराध नहीं कर सकते..."
ReplyDeleteजी प्रणव जी, ये वाकई चिंताजनक व खेद का विषय है....
ReplyDelete@Roli didi....वैसे कहना तो नहीं चाहिये लेकिन स्वाभाव से मैं थोड़ी भावुक हू बचपन से....अब जाकर थोडा सख्त बनाने की कोशिश कर रही हू....ऐसे प्रसंग सुनकर ही मन हिम जाता है...अतः मैं समझ सकती हू कि आपने जब अपनी आँखों से देखा होंगा तो कैसा महसूस किया होंगा....क्यूंकि मैं जानती हू कि आप कोमल दिल रखने वाले लोगों मे से हो......
ReplyDeleteHatss-offfff to u didi.....
Chhaya, Thanx for visiting my blog... I hope u liked it.
ReplyDeletebhavpurn kavita.achchi lagi.
ReplyDeletebahut behtarin rachna..likhte rahiye taki hume baar-baar aane ka mauka mile
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteWaaah.....
ReplyDeleteStart publishing it .....
really nice.
ReplyDeletevivj2000.blogspot.com
मृदुला जी, धन्यवाद...आपको रचना पसंद आई!
ReplyDelete"गौरतलब" एवं अरुणेश जी, उत्साहवर्धन एवं सराहना के लिए धन्यवाद...
दीपेश, विवेक जी, हार्दिक धन्यवाद...
ReplyDeletehi roli ji....
ReplyDeletebahut shandar kavita.....very touching....
Hi roli pathak ji, Aapki kalam ki dhar bahut paini hai, aapko bahut-bahut sadhubad, aap is talbar ko isi tarha chalati raho aur en visangation ko kateti raho.kyu naari hi naari ki dusaman bani hui hai?
ReplyDeleteअर्चना जी, अशोक जी...सराहना के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteRoli Ji, Excellent
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