अधूरे से वो ख्वाब...
जो पलकों तक न पहुंचे....
उनींदी सी अवस्था में
सोच के दायरे में रह गए....
जिन्हें ह्रदय ने चाहा....
और सोच बन के जो,
विचारों में घुमड़-घुमड़,
पलकों में मंडराते रहे.....
आज रात वो सारे ख्वाब,
देखना चाहती हूँ मै......
नींद में डूब के उनमे,
खोना चाहती हूँ मै.....
अपनी अधूरी इच्छाएं,
यूँ पूरी करना चाहती हूँ .....
ख़्वाबों के समंदर से ,
निकाल के चंद लम्हे....
हकीकत बनाकर,
जीना चाहती हूँ ...
हरेक लम्हा...जीना चाहती हूँ......
बहुत सरलता से भावनाओं को व्यक्त किया है आपने.
ReplyDeleteख़्वाबों की सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteयशवंत जी.....संगीता जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद......
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