रूमानियत सारी तब फना हो जाती है
जब चाँद की जगह रोटी नज़र आती है...
तू मुझे स्वप्न में, भी नहीं दिखती है अब,
मुफलिसी मेरी, मुझे रुसवा कर जाती है...
न सूझती है अब, तेरी जुल्फों पे शायरी मुझे,
भूख दो वक्त की, सब कुछ भुला जाती है....
कैसे लिखूँ गीत मै, लाऊं कहाँ से इक ग़ज़ल,
तू भी तो मेरी मुफलिसी से, दामन छुड़ा जाती है...
रूमानियत सारी तब फना हो जाती है,
जब चाँद की जगह रोटी नज़र आती है.......
-रोली...
जब चाँद की जगह रोटी नज़र आती है...
तू मुझे स्वप्न में, भी नहीं दिखती है अब,
मुफलिसी मेरी, मुझे रुसवा कर जाती है...
न सूझती है अब, तेरी जुल्फों पे शायरी मुझे,
भूख दो वक्त की, सब कुछ भुला जाती है....
कैसे लिखूँ गीत मै, लाऊं कहाँ से इक ग़ज़ल,
तू भी तो मेरी मुफलिसी से, दामन छुड़ा जाती है...
रूमानियत सारी तब फना हो जाती है,
जब चाँद की जगह रोटी नज़र आती है.......
-रोली...
सटीक और सार्थक रचना ..
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत खूब मैम
सादर
रेखा जी, यशवंत जी.....शुक्रिया....
ReplyDeleteBahut khoob likha hai Roli ji....
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