शीशमहल ...
इक आशियाना हो काँच का.....
जहाँ कमरे की छत से धूप आये
बरसात में बूंदे बरस-बरस जाएँ
सर्दियों का कोहरा रूह तक महसूस हो
गर्मी की लू , बदन थरथराए....
बस एक ऐसा आशियाना हो
काँच का............................
लेटूँ रात में बिस्तर पे जब अपने
वहीं से बादलों में चाँद नज़र आये
काँच की दीवारों से भोर होते ही
सूरज की किरणें जगमगाएं ....
वहीं से बादलों में चाँद नज़र आये
काँच की दीवारों से भोर होते ही
सूरज की किरणें जगमगाएं ....
बस एक ऐसा आशियाना हो
काँच का............................
कमरे से जुगनुओं को चमकते देखूँ
गिलहरी को पेड़ पर चढ़ते देखूँ
फूलों पर तितली और भँवरे मंडराएं
महसूस हों जहाँ ये, हर पल दायें-बाएं
हाँ, इक ऐसा आशियाना हो
काँच का..............................
- रोली
बहुत सुन्दर मोहक परिकल्पना ..
ReplyDeleteधन्यवाद कविता जी |
Deleteब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद |
ऐसा ही हो सपनो शीश महल ....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कल्पना को आकार दिया ... शरद पूर्णिमा की बधाई !!!
Baap rey-Aap kaun ho
ReplyDeleteabhi bahi mulkat huee hai
Behan key naam sey jaanta huu
per tak kalakar ko pehchna nahi tha
Apna asli parichay karane ka shukrya DI