पैर सिकोड़े,मोड़े हाथ सर्दियों में कोई नवजात धूप में लेटाने पर जैसे लेता खुल कर अंगड़ाई है वैसे ही हफ्तों बाद आज धूप आई है... पौधे जो खूब ऊब चुके थे बारिश में पूरा डूब चुके थे सुरमई मेघों के छंटने से सूरज के खुल कर हंसने से दे रहे खुश दिखाई हैं क्योंकि हफ्तों बाद आज धूप आयी है... मुंडेरों पर कपड़े सूख रहे दरवाज़े खिड़की खुल गए कमरे की सीलन सिमट रही हो रही घरों में सफाई है क्योंकि हफ्तों बाद आज धूप आई है... गद्दे भी थे गीले-गीले बिस्तर भी थे सीले-सीले बारिश के निशां दीवारों पर धब्बे जैसे काले-पीले सूरज की गर्मी से सबने अब कुछ राहत पायी है क्योंकि हफ्तों बाद आज धूप आई है... - रोली
Popular posts from this blog
जननि का महत्व
सदियां ही नहीं युग बीत गए यह कहते हुए कि समाज पुरुष प्रधान है | कई लोग इस बात पर आपत्ति करते हैं कि काहे का पुरुष प्रधान समाज ! आज की नारी बराबरी की हक़दार है हर क्षेत्र में | मैंने भी यह महसूस किया कि कौन सा क्षेत्र अछूता रह गया नारी से जो यह सोचना पड़ा ! इन दिनों भगवान श्री राम की लहर देश भर में चल रही है | सभी राममय हैं | मेरे मन में यूँ ही विचार कौंधा कि माता सीता की माता कौन हैं ये कौन कौन जानता होगा बिना गूगल किये | जनक दुलारी को सब जानते हैं किन्तु जननि को बहुत कम लोग | उनका नाम है - सुनयना, किन्तु अधिकतर लोग उनका नाम नहीं जानते | मुझे याद आया कि मेरी बेटी जब पुणे यूनिवर्सिटी में थी तब उसकी मार्कशीट पे सिर्फ उसका नाम व् माता का नाम अर्थात मेरा नाम आता था क्यों वहाँ माता का नाम ही प्रथम आता है | मै बहुत प्रसन्न हुई थी कि कहीं तो माँ को यह अवसर मिला | कहने का तात्पर्य यह है कि माँ आज भी लुकी-छुपी-दबी है और पिता सर्वोपरि हैं, जबकि दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, एक दूसरे के पूरक हैं | बस, यही आशा एवं विश्वास है कि बेटी जनक दुलारी के साथ सुनयना दुलारी भी कहलाई जाये | - रोली ...
चिट्ठी ना कोई संदेश.…
वर्ष 2023 दिन 9 अक्टूबर, एक वर्ष पूर्व, आज ही का दिन । पापा गट हॉस्पिटल में आईसीयू में हैं, डॉक्टर गोपेश मोदी जी ने हम तीनों भाई-बहन को बुलाया और कहा - अब सिर्फ़ वेंटिलेटर ही चल रहा है । जैसे ही बाबूजी को वेंटिलेटर से हटायेंगे, वो जीवित नहीं रह पायेंगे । मैं रो पड़ी। सब व्यथित हो उठे, एक उम्मीद थी कि पापा को एक बार तो अच्छा कर के घर ले जाना है लेकिन वह टूटती नज़र आ रही थी। हर संभावना पे विचार किया। डॉक्टर बोले - आप लोग सब कुछ कर चुके हैं और हम लोग भी ।आप सभी के जज़्बे की मैं बहुत कद्र करता हूँ लेकिन हम सभी मजबूर हैं ईश्वर के इस निर्णय के आगे ।हम सभी घरवाले बेहद उदास थे, मम्मी परेशान थीं, निःशब्द थीं। यह रात बहुत भयावह थी क्योंकि डॉक्टर एवं हम सबने पापा के जाने का दिन तय कर दिया था ।एक उम्मीद थी कि क्या पता वेंटिलेटर हटाने के बाद भी वे अपनी मौत से लड़ कर हमारे साथ रह जायें कुछ दिन । लेकिन यह एक झूठ था ख़ुद को बहलाने के लिए । नाना की प्यारी नातिनें आंसू भर-भर रो रही थीं क्योंकि अब हम सब समझ चुके थे कि पापा का अंत निकट है । अगले दिन 10अक्टूबर को सुबह 7 बजे हम तीनों भाई-बहन ...

वाह प्रणव जी,
ReplyDeleteएकदम सही द्रश्य खींचा है आपने...
ट्रेन के आते ही शांत पड़े स्टेशन में
जो आप-धापी व हलचल शुरू हो जाती है
वो याद आ गयी आपका कार्टून देख कर.. :)
बहुत बढ़िया कार्टून....
स्मरणीय ।
ReplyDeleteवाह ......क्या कहे ,,,,बस सच में कमाल है ये...
ReplyDeleteकाबिलेतारीफ बेहतरीन
ReplyDeleteIs ko dekhkar aaj se 35 varsh ka samay yaad aagayaa...kyaa sunder citraN hain....
ReplyDelete