हर अहसास को लफ़्ज़ों की ज़रूरत नहीं होती,
गर होती न मोहब्बत तो ज़िन्दगी,
इतनी खूबसूरत नहीं होती.....
आँखें बंद करके देखा है जब-जब तुम्हें,
नींदों में ख़्वाबों की भी, ज़रूरत नहीं होती....
मिलकर भी दूर बैठे हो, क्यों ऐसी बेरुखी,
यूँ दूरियाँ भी तो कोई , शराफत नहीं होती....
ज़माने का है उसूल, मोहब्बत को रोकना,
तेरे लिए जो लड़ लूँ, वो बगावत नहीं होती..
हर अहसास को लफ़्ज़ों की ज़रूरत नहीं होती...
-रोली...
गर होती न मोहब्बत तो ज़िन्दगी,
इतनी खूबसूरत नहीं होती.....
आँखें बंद करके देखा है जब-जब तुम्हें,
नींदों में ख़्वाबों की भी, ज़रूरत नहीं होती....
मिलकर भी दूर बैठे हो, क्यों ऐसी बेरुखी,
यूँ दूरियाँ भी तो कोई , शराफत नहीं होती....
ज़माने का है उसूल, मोहब्बत को रोकना,
तेरे लिए जो लड़ लूँ, वो बगावत नहीं होती..
हर अहसास को लफ़्ज़ों की ज़रूरत नहीं होती...
-रोली...
हर एहसास को लफ़्ज़ों की जरूरत नहीं होती ,
ReplyDeleteगर होती न मोहब्बत तो जिन्दगी ,
इतनी खूबसूरत नहीं होती ....
बहुत खूब, दो पंक्तियों में सारी जिन्दगी का सार, आभार
बहुत बढ़िया रोली जी।
ReplyDeleteसादर
खुबसूरत एहसासों से रची रचना....
ReplyDeletebhaut hi badiya....
ReplyDeleteज़माने का है उसूल, मोहब्बत को रोकना,
ReplyDeleteतेरे लिए जो लड़ लूँ, वो बगावत नहीं होती..
हर अहसास को लफ़्ज़ों की ज़रूरत नहीं होती...
खूबसूरत एहसास से रची सुन्दर रचना
"हर एहसास को लफ़्ज़ों की जरूरत नहीं होती"
ReplyDeleteबहुत खूब
यशवंत जी, सुषमा जी, सागर जी, राकेश जी, संगीता जी, शुक्ला जी.....
ReplyDeleteआप सभी को हार्दिक धन्यवाद..
ahsas ko lafjon ki jaroorat nahee hoti,
ReplyDeleteso nice feeling..thanks Roliji.
Thanks Sushila ji...
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