वसुंधरा......

नील-श्वेत गगन, हो चला गहन... छा रही घटा सुरमयी, बह रही मदमस्त पवन... रह-रह कर कौंधती सौदामिनी.. दिन में ही मानो, उतर आई यामिनी.. निर्झरिणी की लहरें, कर रही अठखेलियाँ ... खिलखिला रही हों जैसे, चंचल सहेलियां... वसुधा रही बदल, अप्रतिम रूप पल-पल... कभी नवयौवना चंचल, कभी उद्वेलित,कभी अल्हड़... कभी गंभीर कभी उच्छृंखल... रिमझिम-रिमझिम टिप-टिप, मेघ देखो बरस पड़े... देवदार औ चीड़, भीग रहे खड़े-खड़े... मुरझाई प्रकृति में,प्राण आ रहे हैं... पत्ते-पत्ते बूटे-बूटे,मुस्कुरा रहे हैं.. नृत्य कर रहे वृक्ष झूम-झूम.. आभार मानो वर्षा का, कर रहे मुख चूम-चूम... बरस-बरस थक गए श्याम मेघ, हो गया उजला जहां... चार चाँद लग गए, इंद्रधनुष प्रकट हो गया.... अभिभूत हूँ मै देखकर ईश्वर की तूलिका....... ईश्वर की तूलिका....... -रोली पाठक http://wwwrolipathak.blogspot.com/