संघर्ष .....


बारहवीं का इम्तहान
ह्रदय भयभीत
मस्तिष्क परेशान...
आने वाला है परिणाम
क्या होगा....
सोच रहा नादान...!!!
आ गया देखो नतीजा
हो गया बड़े कॉलेज में दाखिला
तगड़ी फीस भरनी होगी
पिताजी को और मेहनत करनी होगी,
बस एक बार बन जाऊं इंजीनियर,
सोच रहा किताब पर गडाए नज़र.
पिताजी को इस्तीफ़ा दिलवा दूंगा,
कमरे में उनके एसी लगवा दूंगा
माँ के सारे काम छुडवा दूंगा
दो-दो महरी घर में लगवा दूंगा
ना खाने दूंगा बहन को,
सिटी बस में धक्के,
उसे एक दुपहिया गाडी दिलवा दूंगा.
यूँ ही सपने बुनते-बुनते
हो गया एक और इंजीनियर तैयार,
डिग्री ले कर जहाँ भी जाये,
दिखती एक लम्बी कतार,
रोज़ रात्रि शय्या पर सोचे,
कब तक फिरूँ यूँ बेरोजगार...?
कहीं आरक्षण,कहीं तजुर्बा,
कहीं सिफारिश चाहिए,
डिस्टिंक्शन भी काम ना आये,
उन्हें रिश्वत भी चाहिए...
दम तोड़ रहीं...
आकांक्षाएं, अपेक्षाएं,
इच्छाएं, अभिलाषाएं...
क्षीण होती बल्ब की रौशनी की तरह
पिताजी के मनोबल की तरह...
माँ के आत्मविश्वास की तरह...
बहन की अभिलाषाओं की तरह...
और उसके जीवन की तरह..................!

-रोली पाठक
http://wwwrolipathak.blogspot.com/

Comments

  1. बहुत अच्छी कविता...युवा सोच को अच्छी तरह से दर्शाया आपने...हर हिन्दुस्तानी युवा अभी-भी अपने घरवालों के बारे में पहले सोचता है..."

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  2. मंगलवार 13 जुलाई को आपकी रचना ---भारत बंद ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  3. संगीता जी, बहुत-बहुत धन्यववाद...मेरी रचना को साहित्यिक काव्य मंच पर लेने के लिए.

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  4. Berozgaaron...ke man bhav kuch isi tarah hotne hain. Bilkul sahi likha hain aapne.

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  5. आस-पास की घटनाओं का बढ़िया संयोजन..सुंदर प्रस्तुति..बधाई

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  6. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

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