"भारत-बंद"
ईंट-पत्थर,
टूटी बोतलें
चूड़ियों के टुकड़े,
छूटी चप्पलें,
बच्चों का रुदन
माँओ का क्रंदन,
तोड़-फोड़,हिंसा,आगजनी..
चूड़ियों के टुकड़े,
छूटी चप्पलें,
बच्चों का रुदन
माँओ का क्रंदन,
तोड़-फोड़,हिंसा,आगजनी..
बेबसी की पीड़ा से छटपटाती,
मेरी मात्रभूमि....
रौंदते आन्दोलनकारियों के,
कदमो से घबराती
अपनी संतान के कर्मो पर,
अश्रु बहाती,
सोच में डूबी हुई,
मेरी भारतमाता...
किससे कहे अपनी,
दुखभरी व्यथा...
क्या मिला कल मेरी धड़कन
"बंद" करके..?
रेल रोक के,बस जलाके
मेरी प्रगति मंद करके...?
उँगलियों पे गिन सकूँ
ऐसे मेरे सपूत थे,
काट जंजीरों की कड़ियाँ,
लाये थे अस्तित्व में...
स्मरण आते वे नाम
खो गए जो अतीत में...
हे मेरी संतानों,
ना चीरो मेरा ही दामन
देखती हूँ राम सबमे,
ना बनो तुम रावण
साठ बरसों से सजा रखे हैं,
जो स्वप्न मैंने नयनों में
ना करो उनका हरण,
संवारों मेरे वे स्वप्न तुम,
एक माँ की गुहार है ये,
संतानों से पुकार है ये,
होने दो मुझे अग्रसर,
उन्नति के पथ पर...
प्रगति के पथ पर...
-रोली पाठक (५ जुलाई २०१०)
http://wwwrolipathak.blogspot.com/
रौंदते आन्दोलनकारियों के,
कदमो से घबराती
अपनी संतान के कर्मो पर,
अश्रु बहाती,
सोच में डूबी हुई,
मेरी भारतमाता...
किससे कहे अपनी,
दुखभरी व्यथा...
क्या मिला कल मेरी धड़कन
"बंद" करके..?
रेल रोक के,बस जलाके
मेरी प्रगति मंद करके...?
उँगलियों पे गिन सकूँ
ऐसे मेरे सपूत थे,
काट जंजीरों की कड़ियाँ,
लाये थे अस्तित्व में...
स्मरण आते वे नाम
खो गए जो अतीत में...
हे मेरी संतानों,
ना चीरो मेरा ही दामन
देखती हूँ राम सबमे,
ना बनो तुम रावण
साठ बरसों से सजा रखे हैं,
जो स्वप्न मैंने नयनों में
ना करो उनका हरण,
संवारों मेरे वे स्वप्न तुम,
एक माँ की गुहार है ये,
संतानों से पुकार है ये,
होने दो मुझे अग्रसर,
उन्नति के पथ पर...
प्रगति के पथ पर...
-रोली पाठक (५ जुलाई २०१०)
http://wwwrolipathak.blogspot.com/
बहुत सुन्दर भावों से ओत प्रोत कविता....
ReplyDeletesundar rachna..!!
ReplyDelete"सामयिक रचना...पर बन्द के अलावा कोई और चारा भी तो नहीं था..हाँ केवल एक उपाय हो सकता है कि जनता को सांसद और विधायकों को रिकॉल करने का अधिकार मिल जाए तभी ये समस्या हल हो सकती है ..पर फिर भी आवश्यक चीज़ों को बन्द के दौरान छूट मिलनी चाहिये.....बढिया कविता..."
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete"बंद" से देश को लगभग 13 हज़ार करोड़ का नुक्सान हुआ, सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुँचाया गया, 200 से ज्यादा ट्रेने प्रभावित हुयी, जिनमे ना जाने कितने ऐसे यात्री रहे होंगे जो घर-परिवार के सुख या दुख के मौके पर वक़्त पे ना पहुँच पाए होंगे, कई मरीज इलाज के अभाव में, आवागमन के साधन के अभाव में कष्ट उठाते रहे | अकेले मुंबई में 155 बसें जला दी गयीं, 100 से ज्यादा उड़ाने रद्द कर दी गयीं, टीवी में दिखाए गए द्रश्यों में सब्जी के ठेले वालों के साथ मारपीट, ऑटो चालकों के साथ मारपीट, उनके ऑटो के कांच तोड़े गए, कुछ दुकाने जो खुली थीं उनमे तोड़-फोड़ की गयी, हमारे शहर भोपाल के रेलवे स्टेशन स्थित फ़ूड प्लाज़ा में जम के तोड़ फोड़ की गयी| क्या बंद ऐसा होता है??? ये हिंसा तो ज़रूरी ना थी, आज जो फोटो देखे अखबार में, तो जो भी पत्थर फेंकते, दादागिरी करते, मारपीट करते लोग दिख रहे हैं वे सूरत से ही आवारा किस्म के अनपढ़ व जाहिल मालूम दे रहे हैं, छींट की लाल शर्ट, चितकबरी पैंट, लम्बे बेतरतीब केश, और मुखमुद्रा ऐसी कि- आज मौका मिला है, मज़े करने का, बदमाशी दिखाने का| मेरी 8 वर्षीय बेटी अवश्य खुश थी क्योंकि उसे छुट्टी मिल गयी थी|
ReplyDeleteसामयिक रचना .... पर कौन सुनता है भारत नाता क्या चाहती है ... सब को अपनी अपनी रोटियाँ सेक्नि हैं ...
ReplyDeletegood effort,
ReplyDeletevivj2000.blogspot.com
इस भारत को बंद से बचाना होगा
ReplyDeleteइस भारत को इन झूटे नेताओ से बचाना होगा
अब बस इ वी एम् मशीन में फार्म 49 (o ) लाना होगा
तभी दिखेगी इन नेताओ को इनकी जगह
आज नहीं तो कल अब ये काम तो करवाना होगा !
Roli ji kadwa such hai ye .....Lekin kya karen hamare netaon ko virodh pradharshan ke dusre tareeke maalum hi nahin hain.
ReplyDeleteApki chinta Vaazib hai.