प्रीति.....
आसमाँ के अश्क
धरती पी रही है
सूरज के दिए ज़ख्मो को,
बूंदों से सी रही है......
जेठ की अगन
झुलसा चुकी तन
आ गया सावन
वो अमृत घूँट पी रही है....
धूप से पड़ीं
उसके तन पे दरारें
सुनके आसमाँ ने,
वसुधा की कराहें
बरसा दीं तड़प के
अपनी प्रेम फुहारें..
अश्कों की बूंदों का अब वो,
मरहम लगा रही है..
सूरज के दिए ज़ख्मो को
बूंदों से सी रही है.......
आसमाँ के अश्क
धरती पी रही है.........
-रोली पाठक
http://wwwrolipathak.blogspot.com/
धरती पी रही है
सूरज के दिए ज़ख्मो को,
बूंदों से सी रही है......
जेठ की अगन
झुलसा चुकी तन
आ गया सावन
वो अमृत घूँट पी रही है....
धूप से पड़ीं
उसके तन पे दरारें
सुनके आसमाँ ने,
वसुधा की कराहें
बरसा दीं तड़प के
अपनी प्रेम फुहारें..
अश्कों की बूंदों का अब वो,
मरहम लगा रही है..
सूरज के दिए ज़ख्मो को
बूंदों से सी रही है.......
आसमाँ के अश्क
धरती पी रही है.........
-रोली पाठक
http://wwwrolipathak.blogspot.com/
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .. समसामयिक भी
ReplyDeletebahut sundar ..........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!
ReplyDelete"बूँदों की तरह लयबद्ध...."
ReplyDeleteबेहद ही सुन्दर भावों और बिम्बों से सजी एक मुकम्मल रचना के लिए बधाई. !!
ReplyDeleteप्रकृति के प्रतिबिम्वोँ को अच्छे से सहेजा हैँ। बधाई
ReplyDeleteमेरे सभी प्रिय एवं आदरणीय मित्रों का ह्रदय से आभार...
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