श्रमिक...
मजबूर हूँ
बहुत मजबूर हूँ...
स्वप्न से अपने,
बहुत दूर हूँ...
अपमान सहता हूँ,
कुछ न कहता हूँ,
नन्हे से कच्चे घरौंदे में,
मै रहता हूँ
मै रहता हूँ
आधा पेट खाता हूँ
और कभी-कभी
भूखा ही सो जाता हूँ,
भूखा ही सो जाता हूँ,
तोड़-तोड़ के पत्थर
थक के चूर हूँ...
मजबूर हूँ हाँ,
बहुत मजबूर हूँ...
दूसरों के घर बनाता हूँ,
उनके लिए सपने सजाता हूँ,
अपने लिए बस
एक गुदड़ी है,
उसी को ओढ़ता...
और बिछाता हूँ,
तन से थका,
मन से आहत
मन से आहत
ज़रूर हूँ ...
मजबूर हूँ हाँ,
मजबूर हूँ हाँ,
बहुत मजबूर हूँ.....
गगन जब अगन बरसाता है
एक पर्ण छाया को तरसाता है
धू-धू जब धरा ये तपती है
तन मेरा पसीना बहाता है
देह शिथिल, मन क्लांत
जीवन से दूर हूँ
मजबूर हूँ, बहुत मजबूर हूँ......
- रोली पाठक http://wwwrolipathak.blogspot.com/
गगन जब अगन बरसाता है
एक पर्ण छाया को तरसाता है
धू-धू जब धरा ये तपती है
तन मेरा पसीना बहाता है
देह शिथिल, मन क्लांत
जीवन से दूर हूँ
मजबूर हूँ, बहुत मजबूर हूँ......
- रोली पाठक http://wwwrolipathak.blogspot.com/
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
ReplyDeleteसच को कहती सुन्दर और संवेदनशील रचना..
ReplyDeleteसही कहा आपने .. मजदूर होते ही मजबूर हैं !!
ReplyDeletebahut hi satik aur sundar rachna.......ye bhi padiye-
ReplyDeletehttp://anaugustborn.blogspot.com/2010/01/blog-post_999.html
ये हमारे श्रमजीवी समाज के चरित्र हैं – अपने बहुस्तरीय दुखों और साहसिक संघर्ष के बावज़ूद जीवंत।
ReplyDeleteमेहनत करने वालों का अपनी रचना के जरिए सम्मान करके आपने एक नेक काम किया है.
ReplyDeleteजो लोग केवल अभिजात्य वर्ग के लिए ही लेखन करते हैं मैं तो उन्हें लेखक मानने से ही इंकार करता हूं.
सही अर्थों में आप संवेदनशील लेखिका है
आपको मेरी बधाई
आपकी कलम यूं ही चलती ही इन्ही शुभकामनाओं के साथ
samvedansheel rachna...!!sundar
ReplyDeleteएक श्रमिक का बहुत सुंदर और मार्मिक चित्रण.
ReplyDeleteआप सभी मित्रों को बहुत-बहुत धन्यवाद, मेरी रचना पसंद करने व मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए....धन्यवाद.
ReplyDeleteसंगीता जी, एक बार पुनः चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पे मेरी रचना "श्रमिक" शामिल करने के लिए आभार...बहुत-बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteकडवी सच्चाई से रूबरू करवाती आप की ये कविता विलक्षण है...बधाई..
ReplyDeleteनीरज
Woh to majboor hai aur hum kya kar rahe hain un baal shramiko ke liye???????
ReplyDeleteनीरज जी, दीपेश जी....बहुत-बहुत धन्यवाद आप लोगों का..
ReplyDeleteबहुत अच्छा....मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com .........साथ ही मेरी कविता "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी.......आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद
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