अपनों के दिए ज़ख्म अक्सर
नासूर बन जाते हैं....
वक्त ही होता है मरहम
इस तरह के ज़ख्म का...
शूल से चुभ के दिल में जो,
जिंदगी में उतर आते हैं....
-रोली......
वो भावनाएं जो अभिव्यक्त नहीं हो पातीं वो शब्द जो ज़ुबाँ पे आने से कतराते हैं इन्द्रधनुष के वो रंग जो कैनवास पर तो उतर जाते हैं पर दिल में नहीं...वो विचार जो मस्तिष्क में उथल-पुथल मचाते हैं पर बाहर नहीं आ पाते... उन्हीं को अपनी रौशनाई में ढाल कर आवाज़ दी है शब्द दिए हैं...और इस ब्लॉग पर बिखेरा है..बस एक प्रयास है...कोशिश है..... मेरी ये.....आवाज़
बिलकुल सही कहा आपने.
ReplyDeleteयशवंत जी...शुक्रिया...
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