तन्हाई

उसका ज़िक्र जो हम, हर रोज किया करते हैं
इस बहाने उसमे हम, खुद को जिया करते हैं

उसकी बातें वो मुलाकातें और वो यादें प्यारी
यूँ मिला कर ज़हर, अमृत में पिया करते हैं

वो दरख़्त, जहाँ दस्तखत आज भी हैं दोनों के
देख कर उनको, ज़ख्मे-ए-दिल सिया करते हैं

तेरी पायल के टूटे घुंघरू, उठाये थे जो चुपके से
अब भी सन्नाटे में वो,  छम  से बजा  करते हैं

गैर हो तुम, अब ना रहा हक़  तुम पर मेरा
लेकिन इंतज़ार तेरे आने का रोज किया करते हैं

ना डर  इतना , मुझे भी फिक्र है ज़माने की,
खुद रुसवा हो के भी तेरी पर्दानशीनी का ख़याल किया करते हैं.........

- रोली ...


Comments

  1. mai yahan bhi hu aap ko satane ke liye

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  2. क्या बात ..लाजवाब पाठक मैडम जी

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  3. आप शीर्षक दिया करें
    मैं आपकी प्रतीक्षा बुधवार को भी करूँगी नई-पुरानी हलचल में
    इस ग़ज़ल को वहाँ भी पढ़ियेगा हम सबके साथ
    सादर

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    1. जी...आइन्दा ख्याल रखूंगी :)
      शुक्रिया |

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    2. Roli ji ap bahut acchi writer h

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  4. Hunmmmm...apne pyar ke fasaane ko behad khoobsurat lafzon mein bayan kiya hai !!!

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  5. 'गैर हो तुम...पर्दानसीनी का ख्यास किया करते हैं'. तक की ये चार पक्तिंयां प्यार की बेबसी और उससे उत्पन्न दर्द व वियोग की अवस्था का बाखूबी बयां करती हैं। प्यार का मतलब वैसे भी किसी को शरीर से पा लेना ही नहीं होता। जुदाई और दर्द प्रेम का ही दूसरा रूप है।...वाकई सुंदर कविता जिसमें उपमानों का सुंदर प्रयोग मिलता है।

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    1. राम त्रिपाठी जी...आप मेरे ब्लॉग पर पधारे...
      अहोभाग्य हमारे :) धन्यवाद |

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  6. तन्हाई में बीते दिनों की याद सबसे ज्यादा आती है, जो कभी मन को कभी हँसाती हैं तो कभी रुलाती भी है ..तन्हाई में डूबी बहुत बढ़िया रचना

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    1. शुक्रिया कविता जी....ये अहसास महसूस करने के लिए ...

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  7. वो दरख़्त, जहाँ आज भी दस्तखत है दोनों के
    वाह....
    दिल को सुकून देते शब्द
    मीठी तन्हाई में सन्नाटा तोड़ते शब्द.....

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  8. बेहतरीन गजल


    सादर

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    1. यशवंत जी....उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद |

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  9. बहुत सुन्दर गज़ल....
    खूबसूरत एहसास....

    अनु

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  10. ना डर मुझे भी फिक्र है जमाने की
    खुद रुसवा होकर भी तेरे पर्दानशीं का ख्याल किया करते हैं ।

    यही प्यार है ।

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