मेरे गम भी क्यों नहीं नित,
डूब जाते संग सूरज के,
और खुशियाँ जन्म लेतीं,
फिर सुबह सूरज के साथ......

शाम ढलते ही सदा जैसे
मेरा दर्द है बढ़ता जाता,
मेरी पीड़ा को समेटे
नित चली आती है रात....

स्वप्न मेरे हैं अकेले,
है नहीं साया भी वहाँ,
जिसको मै चाहूँ वहाँ,
क्यों नहीं रहता वो साथ.....

मेरे गम भी क्यों नहीं नित,
डूब जाते संग सूरज के,
और खुशियाँ जन्म लेतीं,
फिर सुबह सूरज के साथ......

- रोली

Comments

  1. संजय भास्कर जी, यशवंत जी.......आभार |

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  2. बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......

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  3. Waah Waah Roli ji...Khoobsurat Rachna !!!

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