अंधा क़ानून

छोटी-छोटी मासूम बच्चियों के साथ होने वाले बलात्कार के आंकड़े मन से विश्वास उठाते हैं । आज कोई रिश्ता-नाता विश्वसनीय नहीं रह गया । हर रोज़ अखबार देश के किसी कोने में एक मासूम की अस्मत तार-तार होने की खबर ले कर आता है । कभी बच्ची मौत से संघर्ष करती रहती है, कभी उस दरिंदे की हवस के बाद मौत के घाट उतार दी जाती है । समाज का नैतिक पतन चरम सीमा पर है । मन आहत हो उठता है उस बच्ची की दुर्दशा की कल्पना मात्र से । जिसके दिन गुड़िया-गुड्डे से खेलने के हैं उसके साथ ऐसी वहशियाना हरकत !!!!! छोटी मासूम बच्चियों पर इस तरह का वीभत्स अमानवीय ज़ुल्म करने वाले निश्चित तौर पर इंसान नहीं हो सकते । खबर ये भी होती है कि त्वरित न्याय प्रणाली के अंतर्गत अपराधी को फलां न्यायालय ने मृत्यु-दंड की सज़ा सुनाई, किन्तु आज तक ऐसे मामलों में कितनी गर्दन फाँसी के तख्ते तक पहुंची ??? एक भी नहीं , क्योंकि जिस अदालत के फैसले की हम सराहना करके उसे भूल जाते हैं, उसके ऊपर कई अपील कोर्ट्स हैं । इस पंगु न्याय प्रणाली को सुधार की सख्त आवश्यकता है । कब न्याय की देवी की आ...