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दोहराए वक्त ने फिर वही फ़साने
जिन्हें बामुश्किल भुलाने लगे थे...
बुझती नहीं ये तिश्नगी-ए-उल्फत
उबरने में जिससे ज़माने लगे थे...
- रोली
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वो भावनाएं जो अभिव्यक्त नहीं हो पातीं वो शब्द जो ज़ुबाँ पे आने से कतराते हैं इन्द्रधनुष के वो रंग जो कैनवास पर तो उतर जाते हैं पर दिल में नहीं...वो विचार जो मस्तिष्क में उथल-पुथल मचाते हैं पर बाहर नहीं आ पाते... उन्हीं को अपनी रौशनाई में ढाल कर आवाज़ दी है शब्द दिए हैं...और इस ब्लॉग पर बिखेरा है..बस एक प्रयास है...कोशिश है..... मेरी ये.....आवाज़
वाह रोली जी वाह इन शानदार पंक्तियों पर ढेरों दाद कुबूल करें.
ReplyDeleteशुक्रिया अरुण शर्मा जी :)
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ReplyDeleteदर्द का एहसास कराती रचना-रोली जी वाह!
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आभार आपका :)
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