माज़ी
कौन है इस जहां में जिसका कोई माज़ी नहीं
ये बात और है लोग बीते कल को भुला देते हैं
वो कम होते हैं जो गुजरी यादों से लिपट कर
ताउम्र उनके दर्द में जीने का मज़ा लेते हैं.......
अश्कों से लिपटे हुए वो उसके सर्द अहसास
अब भी अलाव की लौ सा जलाते रहते हैं ......
उसके साथ गुज़ारे मेरे वो हसींन लम्हें
हर वक़्त साथ जीने का सा मज़ा देते हैं .........
कैसे हैं लोग इस दुनिया में और इक तू भी,
जो खुद से खुद का ही दामन छुड़ा लेते हैं .......
एक हम हैं जो अश्कों के लावे में खुद को डुबो कर,
हर रोज़ तेरी यादों को दिल में पनाह देते हैं ...........
- रोली
वाह रोली जी वाह बेहद उम्दा अहसास समेटे हैं।
ReplyDeleteवंदना गुप्ता जी,
Deleteआपको बहुत-बहुत धन्यवाद |
एहसासों की सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteLATEST POST सुहाने सपने
my post कोल्हू के बैल
शुक्रिया जी...अवश्य देखूंगी | कुछ समय से बाहर थी तो ब्लॉग पर ना आ सकी |
Deleteवाह!
ReplyDeleteशुक्रिया प्रतिभाजी...
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (07-04-2013) के चर्चा मंच 1207 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteअरुण शर्मा जी, बहुत-बहुत आभार एवं शुक्रिया जी...अवश्य देखूंगी | कुछ समय से बाहर थी तो ब्लॉग पर ना आ सकी |
Deletebahut sahi ...abhiwayakti....
ReplyDeleteThank you so much Dr. Nisha ji..... Thanks :)
Delete