जेठ माह की तपती किरणें
तीखे तेवर सूरज के...
तेरी यादें मीठा झरना,
मधु घट सी शीतलता दें...
स्वेद की बूँदें बनी हों जैसे,
सावन की वो प्रथम फुहार...
तन-मन जिस में भीग-भीग कर,
गुनगुनाये राग मल्हार ।
स्मृतियाँ जो संग रहें तो,
जेठ माह भी सावन है
तन हो खारा-खारा तो क्या,
मन तो शीतल पावन है ।
- रोली
"स्मृतियाँ जो संग रहें तो जेठ माह भी सावन है"
ReplyDeleteRamesh Kaushik ji shukriya.
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