चर्चे हमारे आजकल आम हो गए हैं
हम मुफ्त में, बिन कुछ किये बदनाम हो गए हैं.....
हम मुफ्त में, बिन कुछ किये बदनाम हो गए हैं.....
झूठे अफसाने बयाँ कर रहे हैं लोग
सच,खुद को करने में हम, नाकाम हो गए हैं
इक नज़र भर के देख लिया उनको जो हमने,
उस दिन से वो बेहद परेशान हो गए हैं ..
उस दिन से वो बेहद परेशान हो गए हैं ..
सोचीं ना थीं जो बातें, कभी हमने ख्वाबों में,
मन में दबे-दबे से अब वो, अरमान हो गए हैं...
मन में दबे-दबे से अब वो, अरमान हो गए हैं...
बर्दाश्त नहीं हो रही अब उनकी बेरुखी,
अब तो वो मेरी मौत का, सामान हो गए हैं....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteBahut achha likha hai Roli ji...jis ke liye bhi likha hai...;))))
ReplyDeleteThank you so much to all of you my dear friends....
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