देहरी का दीपक जलते ही,
करके सोलह सिंगार तुम,
मन-मंदिर में आ जाना......
पहन लेना सारे जेवर,
ओढ़ लेना लाल चूनर,
सजा के रोली माथे पे ,
मन-मंदिर में आ जाना.....
लगा के अधरों पे लाली,
पहन के कानो में बाली,
चल कर चाल मतवाली ,
मन-मंदिर में आ जाना....
सजा कर नैनों में काजल ,
केशों में गूंथ कर बादल,
बाँध कर पाँव में पायल,
मन-मंदिर में आ जाना....
बहुत ही मनोहारी रचना है वासंतिक श्रृंगार किये।
ReplyDeleteवाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
ReplyDeleteBahut khoob...
ReplyDeleteसंगीता जी, सुषमा जी, वंदना जी....एवं...(?) .. बहुत-बहुत धन्यवाद
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