अंधा क़ानून

छोटी-छोटी मासूम बच्चियों के साथ होने वाले बलात्कार के आंकड़े मन से विश्वास उठाते हैं । 
आज कोई रिश्ता-नाता विश्वसनीय नहीं रह गया । 
हर रोज़ अखबार देश के किसी कोने में एक मासूम की अस्मत तार-तार होने की खबर ले कर आता है । 
कभी बच्ची मौत से संघर्ष करती रहती है, कभी उस दरिंदे की हवस के बाद मौत के घाट उतार दी जाती है । 
समाज का नैतिक पतन चरम सीमा पर है । 
मन आहत हो उठता है उस बच्ची की दुर्दशा की कल्पना मात्र से । जिसके दिन गुड़िया-गुड्डे से खेलने के हैं उसके साथ ऐसी वहशियाना हरकत !!!!! छोटी मासूम बच्चियों पर इस तरह का वीभत्स अमानवीय ज़ुल्म करने वाले निश्चित तौर पर इंसान नहीं हो सकते । 
खबर ये भी होती है कि त्वरित न्याय प्रणाली के अंतर्गत अपराधी को फलां न्यायालय ने मृत्यु-दंड की सज़ा सुनाई, किन्तु आज तक ऐसे मामलों में कितनी गर्दन फाँसी के तख्ते तक पहुंची ??? एक भी नहीं , क्योंकि  जिस अदालत के फैसले की हम सराहना करके उसे भूल जाते हैं, उसके ऊपर कई अपील कोर्ट्स हैं । 
इस पंगु न्याय प्रणाली को सुधार की सख्त आवश्यकता है । 
कब न्याय की देवी की आँखों की पट्टी हटेगी ???
कब तक गुनाहगार साक्ष्य के अभाव में बचते रहेंगे......कब तक...????? ================================================= 


Comments

  1. न्याय व्यवस्था में गहन सुधार अपेक्षित है।

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    1. बेहद आवश्यक है अनुराग शर्मा जी, अन्यथा इस समाज को गर्त में जाने से कोई नहीं बचा सकता | अपराधी निरंकुश हैं, निर्भय समाज में स्वछन्द घूम रहे हैं |

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