माय नेम इज खान

आजकल संदेश देने वाली फिल्मो का दौर फिर शुरू
हुआ है! मै अपनी बेटी के साथ ये फिल्म
देखने गई थी, फिल्म के एक संवाद से वो काफी
प्रभावित हुई- " दुनिया में दो तऱ्ह के लोग होते
है- एक अच्छे,एक बुरे! हिंदू-मुसलमान व दूसरी
कौम ये सब बाते गलत है!" उसने अनेक प्रश्न
किये इस बात से जुडे हुये....जिनका धैर्यपूर्वक
उत्तर दिया मैने, लेकिन बाद में सोचा कि क्या
जैसा मैने उसे सिखाया वो मैने भी सीखा???
शायद नहीं.........!
सबसे झूट बोल सकते है हमलेकिन अपने मन से नहीं!
हम दोहरी जिंदगी जीते है....
समाज के लिये अलग और अपनी संतान के
लिये अलग! समाज के नियम, कानून-कायदे
अलग है जो कई जगह गलत भी है पर
हमे उन्हे मानना पडता है क्योंकी हम उसी
समाज का हिस्सा है, लेकिन हम अपने
बच्चो को सही बाते सिखाना चाहते है और
इसी सोच के चलते हम उनके सामने अपना
राम रूपी रूप प्रस्तुत करते है मन के रावण को
हम समाज के लिये रख लेते है, दशहरे को रावण
के दहन के बाद भी वर्ष भर हम कई बार इस
रावण को मारते है थो कभी उसे जिलाते है,जब
जैसी परिस्थिती हो हम उसी के अनुसार व्यवहार
करने लगते है! माय नेम इज खान का नायक
अंत तक नही बदलता, परीस्थितियो से समझौता
नही करता क्योंकी वो एक फिल्म का नायक है!
हमे तीन घंटे की फिल्म की नही वर्षो की जिंदगी
जीना है! हम फिल्म का संदेश ग्रहण करके अपनी संतान
को उपदेश दे सकते है परंतु अपने जीवन में उसे पूर्णतः
उतार नही सकते, जो संदेश फिल्म में है वो वर्षो से
हमारे मन का राम जानता है लेकिन रावण उसे दबा कर
रखता है, रावण का यही दमन राम को कमजोर करता है
क्योंकी तुलसीदास की रामायण में रावण का अंत एक बार
हुआ था, हम प्रतिवर्ष उसके पुतळे का दहन कर मान लेते है
कि रावण का अंत हो गया, लेकिन क्या वाकई रावण का अंत
हुआ है.........??? क्या अपने बेटी के प्रश्नो के सही उत्तर मेरे
पास है......???
एक पुराना गीत याद आ राहा है...........
"मोरा मन दर्पण कहलाये..
भले-बुरे सारे कर्मो को,
देखे और दिखाये........."
-रोली पाठक.
http://wwwrolipathak.blogspot.com/

Comments

  1. "निदा फाज़ली ने कहा था कि "हर आदमी के भीतर चार-पाँच आदमी रहते हैं" । हम खुद परिस्थियों के अनुसार व्यवहार करते हैं । लेकिन फिर भी बच्चों को तो सही ही शिक्षा देनी चाहिये क्योंकि सच तो सच ही होता है हाँलाकि ये बेहद कठिन काम है......"
    प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. सच है प्रणव जी..
    कोशिश तो यही रहती है कि जो हम सीख कर भी
    आचरण में लाने में असमर्थ रहे वो बच्चे सीखें,
    समझें और व्यवहार में लायें.........

    ReplyDelete
  3. "धन्यवाद आपका रोली जी......"
    प्रणव सक्सैना
    amitraghat.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. jis dharm main khushiyan... ek mook prani ki nirmam hatya kar ke mani jaati hai... us dharm ki buniyad hi hindu dharm se vipreet.... HINSAK hai... hum nariyal todna bali ka prateek mante hain...aur ve... ek jeevan ki bali dete hain.....kher vaad vivad.... tark aur tathyon... se ham jeet to sakte hain ...par tathakathit samajhdaar aur bade hone par hi.
    mera 7 saal ka beta jab mujhe vismay poorvak batata hai ki uska sahpathi musalman hai..." maa muslims kya alag hote hain".... jwab bahut soch samajh kar dena padta hai...maine use -MY NAME IS KHAN nahi dikhai...shayad vo abhi samajhne main asamarth hai ...... ya shayad main samjhane main.
    pooja

    ReplyDelete
  5. सच है पूजा....लेकिन हमारे देश में कौमी एकता को बहुत महत्त्व
    दिया जाता है और जब सारी जिंदगी साथ ही रहना है तो नफरत
    क्यों??? हमारे धर्म में भी इंसान के रूप में भेड़िये होते हैं, क़त्ल ,
    चोरी, गुंडागर्दी, बलात्कार, मंदिर का नाम ले केर भावनाए भड़काने
    वाले....क्या ये सब नहीं हैं? काली माँ के सामने हमारे धर्म में आज भी बलि चढाते हैं!बाल विवाह, दहेज़ जैसी कुप्रथाएँ हमारे धर्म में अधिक हैं.....तो ये कहना बहुत मुश्किल है कि कौन ज्यादा अच्छा है या कौन ज्यादा बुरा...!!! बेशक तुम आर्य को बताओ कि तुम्हारा दोस्तभी तुम्हारी तरह ही है, कम से कम तब तक तो वो दोनों प्यार से रहेंगे जब तक समाज उनके अन्दर नफरत के बीज बोना ना शुरू कर दे........!

    ReplyDelete
  6. jab ki main ye jaanti hoon ki "doosron ke paap ginane se khud ke paap kam nahin hote hain" phir bhi ye manane se nahi chukti hoon ki... kuch paap dhul sakte hain aur kuch amitt hain....par balak man sutarko aur kutarko ki nahisirf pyaar ki bhasha samajhta hai..... kaash ham sab phir baalak ban jaaen

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

जननि का महत्व

पापा

भीगी यादें