बंधन


जब साथ हो तेरा प्यारा सा
दूरियां क्यों सिमट जाती हैं....
क्यों मेरे बदन से
तेरी खुश्बू आती है...
क्यों मन को वो बंधन
अच्छा लगता है...
जैसे अमरबेल किसी
वृक्ष से लिपट जाती है...
वक़्त क्यूँ तब ठहरता नहीं,
उसकी गति और तेज़ हो जाती है.
बावरा मन जब चाहता है साथ तेरा..
क्यों वक़्त की रेत,
मुट्ठी से फिसल जाती है....
जब साथ हो तेरा प्यारा सा......
दूरियां क्यों सिमट जाती हैं!!!!

-रोली पाठक.
http://wwwrolipathak.blogspot.com/

Comments

  1. "बेहतरीन! कविता में क्या लय है पढ़ने में आनन्द आ गया........"
    amitraghat.blogspot.com

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  2. its really very nice.. pani meri ankho ka sath chodne lage the...is kavita ko padh kar.....
    bahoot pyari.....dil se.....

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