ढाई आखर का प्रेम


भँवरे का कली संग, बरखा का बादलों संग, चाँद का चकोर से, कृष्ण का राधा से, यही है प्रेम ।
वो रिश्ता जिसका कोई नाम नहीं , ना रूप, ना आकार । जिसमे ना अपेक्षाएं, न स्वार्थ, यह है प्रेम ।
एक ऐसी भावना, जिसके वशीभूत हो तरंगिनी सागर से जा मिले , किन्तु वह मिलन दिखाई ना दे ।
सूर्य को प्रेम है प्रकृति से । अपनी रश्मियाँ वह हरेक कली, फूल, वृक्ष व् प्राणी पर समान रूप से लुटाता है ।
मेघ अपनी प्रेम की बूंदों से अभिसिंचित करता है धरती को । उसकी बूँदें नेह बन जब बरसती हैं तब मुरझाई प्रकृति में प्राण आ जाते हैं , यही है प्रेम ।
पंछियों को प्रेम है उन्मुक्त आकश से , जहाँ वे स्वच्छंद उड़ते-फिरते हैं । कलरव करते हैं ।
प्रेम वह भावना है जिसमे अनेक रंग समाहित हैं - आनंद , ईर्ष्या, पीड़ा , त्याग, समर्पण आदि ।
इस पूरी कायनात में इंसान का प्रेम सर्वाधिक प्रायोगिक है । कई बार इस भावना में सराबोर वह आकंठ डूबा रहता है , कभी ईर्ष्यावश द्वेष की भावना उपजा लेता है, कभी वह पीड़ा में बोझिल दिन-रात दर्द सहता है, कभी समर्पण में आंतरिक सुख की अनुभूति करता है ।
प्रेम वह भावना है जहाँ सारे स्वार्थ सिमट जाते हैं, जहाँ हरेक नाता गौण हो जाता है , वही है प्रेम की पराकाष्ठा ।
प्रभु श्री राम ने प्रेम के वशीभूत हो आजीवन एक पत्नी व्रत का पालन किया । कृष्ण का नाम कभी रुकमणी संग तालमेल ना बैठा पाया । शिव, सती व् पार्वती को एक रूप में पा कर ही सम्पूर्ण हुए । प्रेम में इंसान का पतन भी होता है, उत्थान भी ।
प्रेमी यदि साथ हो तो जेठ माह भी वसंत ऋतु सा आनंद देती है, अगर विरह का समय हो तो वसंत ऋतु की मीठी बयार जेठ की अगन लगती है ।
सावन की प्रथम फुहार प्रेमाग्नि की ज्वाला को और दहकाती है । कार्तिक का गुलाबी जाड़ा प्रेम को नर्म-गर्म आलिंगन प्रदान करता है । फागुनी बयार, टेसू संग प्रेम को अपने रंग में रंग देती है ।
भीगी पलकों की नमी चुरा ले, मायूस होठों पर मुस्कराहट ला दे , बोझिल दिल को खिलखिला कर हँसा दे , ऐसा होता है प्रेम ।
प्रेम के बगैर तो सभी अधूरे हैं । ना केवल इंसान बल्कि पशु-पक्षी, चाँद-सूरज, फूल-भँवरे सभी ।
हरेक के जीवन में प्रेम की सरल भाषा है, जिसे बिना बोले समूचे अस्तित्व को स्वीकार कर लिया जाता है ।
हवाओं में, लहरों में, पंछियों के कलरव में,
भँवरे की गुनगुन में,इंसान के कोमल मन में ...सब जगह प्रेम बसता है ।
प्रेम की सुरभि प्रेमी ही महसूस कर सकता है । इस ढाई अक्षर के शब्द में समूची सृष्टि समाहित है । इसे खोजो, इसे पाओ और सम्पूर्णता का अहसास करो ।

- रोली पाठक



Comments


  1. प्रेम में जब कोई स्वार्थ न हो ,न कोई अपेक्षाएं तो वह सात्विक प्यार ,दैविक प्यार होता है =सुन्दर प्रस्तुति
    latest post सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
    latest postऋण उतार!

    ReplyDelete
  2. प्रभावशाली प्रस्तुति
    ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो होइ

    ReplyDelete
    Replies
    1. राकेश कौशिक जी,
      बहुत-बहुत धन्यवाद आपका |

      Delete
  3. यशोदा जी, बहुत-बहुत धन्यवाद | चर्चा मंच में आज इस रचना को शामिल करने के लिए | साथ ही कुछ अन्य बेहतरीन लिंक्स भी पढ़ने मिलीं |

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

जननि का महत्व

पापा

भीगी यादें