आया फागुन.......
अहाते में मेरे
धूप का नन्हा सा टुकड़ा
रोज़ उतर आता है...
इस सर्द सुबह में
वह नन्हा सा टुकड़ा
भला-भला सा नज़र आता है...
टेसू की चटकती कलियों से
चुरा के रंग वह
मेरी चूनर में दे जाता है.....
आँगन में चहचहाती वह
नन्ही सी चिड़िया,
दाने चुग-चुग के
आभार प्रकट करती है....
सांझ-सवेरे उसका कलरव
मेरा मन हर लेती है...
कोयल कूक सुनाने लगी,
बौर की खुश्बू आने लगी,
बदल गयी रुत
सुनाई देने लगी
भवरें की गुनगुन
दे दी है दस्तक
मीठी बयार ने,
ऐपन लगी देहरी पे
देखो खड़ा है फागुन....
धूप का नन्हा सा टुकड़ा
रोज़ उतर आता है...
इस सर्द सुबह में
वह नन्हा सा टुकड़ा
भला-भला सा नज़र आता है...
टेसू की चटकती कलियों से
चुरा के रंग वह
मेरी चूनर में दे जाता है.....
आँगन में चहचहाती वह
नन्ही सी चिड़िया,
दाने चुग-चुग के
आभार प्रकट करती है....
सांझ-सवेरे उसका कलरव
मेरा मन हर लेती है...
कोयल कूक सुनाने लगी,
बौर की खुश्बू आने लगी,
बदल गयी रुत
सुनाई देने लगी
भवरें की गुनगुन
दे दी है दस्तक
मीठी बयार ने,
ऐपन लगी देहरी पे
देखो खड़ा है फागुन....
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता.
ReplyDeleteसादर
यशवंत जी, बहुत बहुत शुक्रिया.........
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