माँ की सीख.......
मेरे आँगन की देहरी पर,
साँझ ढले दीपक जलता है...
घर की देहरी लिपि-पुती ही,
वधु सी ही शोभा देती....
माँ कहती थी, अपने घर में,
भोर हुए तू ऐपन देना,
साँझ ढले तुलसी तले,
नन्हा सा दिया जला देना...
सूर्यदेव जब पूरब में हों,
जल उनको अर्पित कर देना...
ये बातें है बड़ी काम की,
गाँठ इन्हें तू बाँध लेना....
जब-जब तम होगा जीवन में,
वही दिया पथ-प्रदर्शक होगा....
अमावस गर छाये जीवन में,
सूर्यदेव का अर्घ्य हर लेगा....
घर की देहरी सदा ही सबका,
करती रहेगी सत्कार...
कभी ना कम होगा मेरी बेटी,
तेरे घर का भरा भण्डार....
तेरे लिए यही मेरी पूँजी,
सीख, स्नेह व प्रेम अपार.........
- रोली...
साँझ ढले दीपक जलता है...
घर की देहरी लिपि-पुती ही,
वधु सी ही शोभा देती....
माँ कहती थी, अपने घर में,
भोर हुए तू ऐपन देना,
साँझ ढले तुलसी तले,
नन्हा सा दिया जला देना...
सूर्यदेव जब पूरब में हों,
जल उनको अर्पित कर देना...
ये बातें है बड़ी काम की,
गाँठ इन्हें तू बाँध लेना....
जब-जब तम होगा जीवन में,
वही दिया पथ-प्रदर्शक होगा....
अमावस गर छाये जीवन में,
सूर्यदेव का अर्घ्य हर लेगा....
घर की देहरी सदा ही सबका,
करती रहेगी सत्कार...
कभी ना कम होगा मेरी बेटी,
तेरे घर का भरा भण्डार....
तेरे लिए यही मेरी पूँजी,
सीख, स्नेह व प्रेम अपार.........
- रोली...
यह परम्पराएं, यह सीख अब कम होती जा रही है. आधुनिकता की ऑधी में ऐसी रचनाएं पथप्रदर्शक होती हैं।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और प्रेरक प्रस्तुति..काश यह सीख आज सभी पालन कर सकें .
ReplyDeleteसंगीता जी, एक बार पुनः मेरी रचना को "चर्चा-मंच" में स्थान देने हेतु धन्यवाद.......
ReplyDeleteमहिला दिवस की शुभकामनाएँ........ :)
आदरणीय धीरेन्द्र जी एवं कैलाश जी,
ReplyDeleteप्रशंसा हेतु आभार | आपका दिन शुभ हो......
मनप्रीत जी, शुक्रिया जी.........
ReplyDeletewishing you to a very HAPPY WOMEN'S DAY....
I will surely visit your blog.