कैसा है ये युग पाषाण.....
स्वभाव कठोर...
ह्रदय पत्थर..
शून्य संवेदनाएं ..
मृत भावनाएँ...
मन अचेत...
मानव निष्चेत,
इच्छाएं अनंत,
जीवन परतंत्र...
बुझे नयन,
क्षीण तन-मन...
मस्तिष्क में तनाव,
रिश्तों में चुभन,
भावना स्वार्थ की,
मृत्यु परमार्थ की,
मृत्यु यथार्थ की,
कैसा है यह युग पाषाण...
कैसा है ये युग पाषाण....
-रोली....
स्वभाव कठोर...
ह्रदय पत्थर..
शून्य संवेदनाएं ..
मृत भावनाएँ...
मन अचेत...
मानव निष्चेत,
इच्छाएं अनंत,
जीवन परतंत्र...
बुझे नयन,
क्षीण तन-मन...
मस्तिष्क में तनाव,
रिश्तों में चुभन,
भावना स्वार्थ की,
मृत्यु परमार्थ की,
मृत्यु यथार्थ की,
कैसा है यह युग पाषाण...
कैसा है ये युग पाषाण....
-रोली....
युग पाषाण हो न हो इंसान ज़रूर पाषाण हो गया है ...अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी....
ReplyDelete.इन्सान ने ही इस युग को पुनः पाषाण युग बना दिया है.....