एक पीड़ा
महसूस हो रही,
क्यों, किसके लिए....
ह्रदय जानता नहीं.........
नयन बूझ नहीं पाते,
आँसुओं की पहेली....
क्यों कर भीग रहे कोर
जबकि सबकुछ है पास मेरे....
एक कसक, एक उलझन ,
है क्यों, किसके लिए.....
ह्रदय जानता नहीं........
हैरान परेशां है ये,
नन्हा सा दिल...
वो है कौन जिसका पता,
अब तक मिला नहीं.....
एक हैरत एक चाहत,
है क्यों, किसके लिए.....
ह्रदय जानता नहीं......
अजीब कश-म-कश है,
अजीब प्यास है.....
किसी को पाने का,
अजीब अहसास है....
एक स्वप्न, एक कल्पना,
है क्यों,किसके लिए.........
ह्रदय जानता नहीं............
- रोली......
बस कुछ एहसास होते हैं पर स्पष्ट पता नहीं होता की क्यों हैं ...कश्मकश को बहुत खूबसूरती से लिखा है ..
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह कविता.
ReplyDeleteमहिला दिवस की शुभकामनाएं.
संगीता जी, आभार... :)
ReplyDeleteमहिला दिवस की आपको ढेरों शुभकामनाएँ.....
यशवंत जी, रचना की प्रशंसा हेतु व महिला दिवस की बधाई हेतु, ह्रदय से धन्यवाद...आपका दिन शुभ हो...
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