पहले अपने हुए...फिर बहुत अपने...और अब गैर हो रहे हैं
कैसा है ये अजब दस्तूर ज़माने का, अपनों से बैर हो रहे हैं ..
- रोली...
कैसा है ये अजब दस्तूर ज़माने का, अपनों से बैर हो रहे हैं ..
- रोली...
वो भावनाएं जो अभिव्यक्त नहीं हो पातीं वो शब्द जो ज़ुबाँ पे आने से कतराते हैं इन्द्रधनुष के वो रंग जो कैनवास पर तो उतर जाते हैं पर दिल में नहीं...वो विचार जो मस्तिष्क में उथल-पुथल मचाते हैं पर बाहर नहीं आ पाते... उन्हीं को अपनी रौशनाई में ढाल कर आवाज़ दी है शब्द दिए हैं...और इस ब्लॉग पर बिखेरा है..बस एक प्रयास है...कोशिश है..... मेरी ये.....आवाज़
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteYeh dastoor chalta raha hai...aur chalta rahega...Behtreen..
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