जाड़े में कम्बल की तरह
जेठ माह में शीतल हवा...
इक ढाल की तरह बुरी नज़रों से बचाता
प्रेम लुटाता ईश्वर की तरह.... - "पिता"
- रोली
जेठ माह में शीतल हवा...
इक ढाल की तरह बुरी नज़रों से बचाता
प्रेम लुटाता ईश्वर की तरह.... - "पिता"
- रोली
वो भावनाएं जो अभिव्यक्त नहीं हो पातीं वो शब्द जो ज़ुबाँ पे आने से कतराते हैं इन्द्रधनुष के वो रंग जो कैनवास पर तो उतर जाते हैं पर दिल में नहीं...वो विचार जो मस्तिष्क में उथल-पुथल मचाते हैं पर बाहर नहीं आ पाते... उन्हीं को अपनी रौशनाई में ढाल कर आवाज़ दी है शब्द दिए हैं...और इस ब्लॉग पर बिखेरा है..बस एक प्रयास है...कोशिश है..... मेरी ये.....आवाज़
Comments
Post a Comment