मसखरा प्रेम....
पूछती हूँ मै तुमसे -
कब रेत में रगींन फूल खिलेंगे ..!!!
कहते हो तुम -
जब पानी में हम-तुम मिलके शब्द लिखेंगे ...
सोचती हूँ
कब सितारे टूट कर आँचल में गिरेंगे ..!!!
कह देते हो -
चाँद-सूरज जब कभी फलक पर मिलेंगे ...
पूछती हूँ -
क्या बादल बरसेंगे जेठ महीने में......!!!
कहते हो तुम -
पूस में इस बार रगीं टेसू खिलेंगे ....
कहती हूँ मै -
देखना है इंद्रधनुष को छत पर उतरा ...
हँसते हो तुम-
देख लेना अपनी चूनर को छत पर बिखरा ...
नाराज़ हूँ मै -
कुछ भी कहते हो , ये भी कोई बात हुई .....!!!
खिलखिला उठते हो तुम -
"प्रेम में है..हर बात सही ...हर बात सही।"
- रोली ..
कब रेत में रगींन फूल खिलेंगे ..!!!
कहते हो तुम -
जब पानी में हम-तुम मिलके शब्द लिखेंगे ...
सोचती हूँ
कब सितारे टूट कर आँचल में गिरेंगे ..!!!
कह देते हो -
चाँद-सूरज जब कभी फलक पर मिलेंगे ...
पूछती हूँ -
क्या बादल बरसेंगे जेठ महीने में......!!!
कहते हो तुम -
पूस में इस बार रगीं टेसू खिलेंगे ....
कहती हूँ मै -
देखना है इंद्रधनुष को छत पर उतरा ...
हँसते हो तुम-
देख लेना अपनी चूनर को छत पर बिखरा ...
नाराज़ हूँ मै -
कुछ भी कहते हो , ये भी कोई बात हुई .....!!!
खिलखिला उठते हो तुम -
"प्रेम में है..हर बात सही ...हर बात सही।"
- रोली ..
Prem mein har baat sahi..har baat sahi...Waah Waah !!!
ReplyDeleteशुक्रिया :)
Deleteप्रेम में उलट पुलट जाते हैं मौसम सारे !
ReplyDeleteसत्य कहा आपने .....
Deleteधन्यवाद "वाणी-गीत"
प्रेम का मसखरा रूप अच्छा लगा।
ReplyDeleteसादर
यशवंत जी...आभार |
Deleteप्रेम की हर बात ऐसी हो होती है ...
ReplyDeleteये चुहल प्रेम की सांस है ... बहुत खूब ...
दिगंबर जी.....बहुत-बहुत धन्यवाद |
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